Thursday, 20 March 2025

 अच्छाई जीत गई !                            

आज शर्मा जी का सारा परिवार बहुत प्रसन्न था। सबके अपने-अपने कारण 
थे। शर्मा जी और उनकी पत्नी आनंदित थे क्योंकि पूरे एक दशक बाद उनके 
परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ होली मनाने का अवसर मिला था। 

उनका बेटा,सौरभ और बहू,ऋचा दोनों अपने बचपन की सुनहरी यादें ताज़ा 
कर रहे थे;कैसे वे होली के दिन अपने दोस्तों के साथ टोलियाँ बना कर 
हुल्लड़ मचाते थे। 

सात साल के पलाश और तीन साल की परी ने भी अपने दादा-दादी  से मथुरा- 
वृन्दावन की होली का बहुत वर्णन सुना था तो इस बार वे दोनों भी अपनी 
पिचकारियाँ और गुलाल लेकर बेसब्री से रंग खेलने की प्रतीक्षा कर रहे थे और 
दादी के हाथ की बनी गुझियाँ, शक्करपारे,सेव; सब अपनी मुट्ठी में दबाए,खाते 
घूम रहे थे। वे भी लाड़ से कहतीं,"अरे,और ले लो! तुम दोनों  के लिए ही तो 
बनाई हैं ये सब चीज़ें। जी भर कर खाओ! "

दादी जी ने अपने पोते-पोती को प्रह्लाद और होलिका की कहानी सुनाई थी । उन नन्हे-मुन्नों की भाषा में होलिका दहन एक स्पैशल बॉन फायर होता 
है जिसमें सब लोग अपनी बुरी आदतों को छोड़ कर गुड पर्सन बनने का 
प्रॉमिस  करते हैं और इस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। 

दिन ढला और कॉलोनी के निवासी होलिका दहन के लिए एकत्र होने लगे। 
लकड़ी और गोबर के कंडों को रस्सी और कलावे से बाँध कर रखा गया था। 
पंडितजी सब लोगों के साथ दहन के मुहूर्त  की  प्रतीक्षा कर रहे थे। 
जौ की  बालियाँ और  प्रसाद के लिए  मिष्ठान लेकर शर्माजी भी सपरिवार 
वहाँ पहुँच गए और पंडित जी को प्रणाम कर के अपने परिचितों की कुशल 
क्षेम पूछने में लग गए। 

लोग जौ,गेंहूँ की बालियाँ और पूजा सामग्री लिए  खड़े थे। जैसे-जैसे होलिका-
दहन का मुहूर्त निकट आने लगा,कुछ लोगों ने पूजा सामग्री, पुष्प,इत्यादि 
अर्पण करने आरम्भ किए। किन्तु, यह क्या? अचानक ॠचा की दृष्टि एक 
सज्जन और उनके सात-आठ वर्षीय पुत्र पर पड़ी। दोनों बहुत श्रद्धा भाव से 
एक सिंथेटिक चुनरी और प्लास्टिक के फूलों की माला से लकड़ियों के ढेर 
को सजा रहे थे। कुछ लोग अग्‍नि प्रज्ज्वलित करने के लिए लकड़ियों में घी 
डाल रहे थे और उसके रिफ़िल पैक को भी साथ में जलने के लिए छोड़ रहे 
थे। किसी ने ताज़े पुष्प प्लास्टिक के पैकेट में खरीदे थे तो पुष्प अर्पित कर के 
उनके प्लास्टिक कवर को वहीं ज़मीन पर फ़ेंक रहा था। 


ऋचा से यह देखा न गया। यह तो वैसा पावन त्योहार नहीं था जिसकी मधुर 
स्मृतियाँ उसने मन में सँजो रखी थीं! उसे अपनी भारतीय संस्कृति पर बहुत 
गर्व था और सदैव  अपने बच्चों को बताती आई थी कि भारतीय त्योहार 
प्राकृतिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक मूल्यों से प्रेरित हैं इसलिए उनसे जुड़ी 
परम्पराओं में  प्राकृतिक तत्वों के लिए सम्मान झलकता है और उनकी पूजा 
की जाती है। 

वह उन्हें दिखाना चाहती थी कि कैसे हमारे त्योहार और रीति-रिवाज़ 
प्रकृति के साथ ताल-मेल बैठा कर समरसता का भाव जगाते हैं। 

परंतु यहाँ का दृश्य देख कर उसे अपनी आशाओं पर पानी फिरता प्रतीत 
हो रहा था। वह बिना समय गँवाए प्लास्टिक के फूलों की माला और 
सिंथेटिक चुनरी चढ़ाने वाले सज्जन के पास गयी और विनम्रता पूर्वक 
उनसे उन कृत्रिम वस्तुओं को  हटाने का आग्रह किया। 

वे तुरंत उसकी बात मान गए तो उनके प्रति अपना आभार प्रकट करके 
उसने पंडित जी के समक्ष हाथ जोड़ कर उनसे  निवेदन किया कि वे अग्‍नि 
प्रज्ज्वलित होने  से पहले घी के रिफ़िल पैक को हटवा दें। तत्पश्चात  जितनी 
भी प्लास्टिक की थैलियाँ और डिब्बियाँ नीचे फिंकी हुई पड़ी थीं, झटपट 
उन्हें उठाकर  कूड़ेदान में डाल आई। 

सौरभ को ऋचा का यह व्यवहार थोड़ा अटपटा एवं आपत्तिजनक लग रहा 
था। उसे चिंता हुई  कि भले ही ऋचा नेक नीयत से यह कार्य कर रही थी,
कहीं कोई उसे इस बात के लिए भला-बुरा न कह दे। 

वह उसके निकट जाकर फ़ुसफ़ुसाया," ऋचा,ऐसे टोका-टाकी मत करो। 
लोग बुरा मान जाते हैं। 
ऋचा थोड़ी अनमनी सी हो गयी और सौरभ के साथ अपने सास-ससुर और 
बच्चों के पास जा कर खड़ी हो गई। 

तभी शर्माजी ने उन दोनों को आँख से इशारा किया। फिर  ऋचा और सौरभ 
ने जो देखा उससे दोनों गद्गद हो उठे। पंडित जी ने रिफ़िल पैक लकड़ियों 
के बीच में से हटवा दिया था और सब को सम्बोधित करते हुए कह रहे थे,
"हमारी पूजा-प्रार्थना की शोभा तो प्राकृतिक वस्तुओं से है। इस पवित्र अग्‍नि 
में या इसके आसपास प्लास्टिक का क्या काम? कृपया सभी लोग किसी भी 
प्रकार के प्लास्टिक को न तो अग्‍नि में डालें और न ही इधर-उधर फ़ेंकें। 
ऐसा करने से आप सब को परिक्रमा करने में भी सुविधा होगी।"

होलिका दहन आरम्भ हुआ। शर्माजी और सौरभ ने जौ की बालियाँ भूनीं
फिर पूरे परिवार ने अग्‍नि की परिक्रमा करी, प्रसाद बाँटकर सब को होली 
की शुभकामनाएँ दीं और खुशी-खुशी घर को चल दिए।  

घर पहुँच कर दादी ने पोते-पोती से पूछा,"कहो बच्चों, कैसा लगा स्पेशल 
बॉन फायर?" दोनों ताली बजाते हुए ऋचा से लिपट गए। पलाश बोला,
" बहुत अच्छा लगा। अच्छाई जीत गई!" 

-चारु शर्मा 
21/03/2025









Monday, 24 February 2025

 हम शिक्षित जन !👩🏻‍🎓👨🏻‍🎓


आगे-आगे पश्चिमी जगत        

पीछे-पीछे भागें हम।🏃🏻‍♀️🏃🏻🏃🏻‍♀️🏃🏻

भली-बुरी उसकी हर आदत 

अपना लेते गरम-गरम।।


उसकी देखा-देखी बदला 

खान-पान, मिष्ठान भी।

बोलचाल के तौर तरीके   

रहन-सहन, परिधान भी।।


अपने पर्व पुराने लगते

वैलेंटाइन लगे रुचिकर 🩷

होली में दिखतीं सौ कमियांँ

हैलोवीन हुआ मनहर!💀👹😍


लगे अनावश्यक निज भाषा

छोड़ रहे हैं उसका साथ।

इंग्लिश संग ही दिखे भविष्य

दृढ़ता से थामा है हाथ।।


ऐसी है यदि व्याख्या अपनी

करना होगा हमें विचार।

क्यों करते अनुकरण अत्यधिक?

क्यों ऐसा अपना व्यवहार?


हैं सक्षम अरु होनहार भी

देश को हम पर अभिमान। 

किंतु कहाने को वैश्विक हम 

खो रहे अपनी पहचान।।


समझें निज भाषा,संस्कृति को

सँवार लें समयानुसार।

नए भारत की पूर्ण छवि अब

देख ले सारा संसार।।🙏


-चारु शर्मा 
24 /02 /2025 


शब्दार्थ ( word- meaning)

परिधान-  वस्त्र (dress)

रुचिकर- जिसमें रुचि हो, प्रिय (interesting, dear)

मनहर - मनोहर, मनभावन,आकर्षक (attractive)

अनुकरण - नकल  करना (to copy)

अत्यधिक - बहुत ज़्यादा (excessive)

अरु - और (and)

कहाने को - कहलाने को  (to be called)

वैश्विक -विश्व का ( global)

सँवार लें - व्यवस्थित करें/ ढाल लें  (develop and let them evolve)

समयानुसार - समय के अनुसार (according to the time)

पूर्ण छवि -  (complete image)

देख ले सारा संसार - (let the whole world see)



Thursday, 16 January 2025



गुब्बारे नहीं
 





कोई अवसर हो उत्सव का ,
या हों पर्व हमारे। 
रंग - रँगीली सज्जा में न ,
शामिल हों गुब्बारे।। 

क्या जाने वे कहाँ गिरेंगे ,
किस निरीह प्राणी को मिलेंगे। 
हर न लें वे किसी के प्राण , 
बात सदा यह रखना ध्यान।। 

कागज़ , कपड़े , फूल  को Hi!😃
गुब्बारों को  Bye!Bye!😁
 
                -चारु शर्मा 


word-meaning 
निरीह - innocent 

Translation:
May it be any occasion of celebration 
or any festival 
let us make sure that balloons are not used 
in the colorful decoration.

Who knows where they will fall  
Which innocent creature will find them
( and might swallow them )

They might take away some creature's life. 
Always remember this.
( Hence) Say Hi! to ( Use) Paper, cloth and flowers.  
Bye! Bye! to ( don't use) balloons 🙏

यह लघु कविता मैंने Beautiful Bharat के 
'No Ballons Please' Campaign  के लिए 
लिखी है। 

आइए हम सब साज-सज्जा में प्राकृतिक अथवा  प्राकृतिक 
रूप से विघटित  होने वाली (बायोडिग्रेडेबल )
सामग्री का प्रयोग करें और अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखने में 
सतत  योगदान दें। 🙏😊

Wednesday, 8 January 2025

 प्रवासी भारतीय दिवस 2025


अपने कौशल को निखारने,

आगामी जीवन संँवारने,

बेहतर अवसर की तलाश में,

वे पहुंँचे परदेस में।


स्वजनों से पाईं उपमाएंँ,

होनहार,काबिल कहलाए 

स्वार्थी सम शीर्षक भी पाए😉

ढलकर पर-परिवेश में।


कर्मभूमि में कमर कसी है, 

मातृभूमि पर हृदय बसी है, 

साख तिरंगे की बढ़ा रहे,

रहते हुए विदेश में।


मेहनत कर सम्मान पा रहे,

कीर्ति भारत की बढ़ा रहे,

संस्कृति दुनिया को दिखा रहे,

हैं प्रतिनिधि विशेष वे।


उन्नति के सोपान बनाते,

नित नवीन तकनीकी लाते,

काज के अवसर बढ़वाते,

करके पूंँजी-निवेश वे।


युवा वर्ग को करते प्रेरित,

बना रहे हैं उन्हें प्रशिक्षित, 

' विकसित भारत' किया सुनिश्चित, 

सहभागी के वेश में।

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻💐💐💐💐

-चारु शर्मा 
09/01/2025

Tuesday, 31 December 2024

 मंगलकामना के साथ नूतन वर्ष की शुभकामनाएँ 

🌻🌻🌹🌹🌻🌻

देकर स्वर्णिम क्षण अनेकों,
विदा हुआ गत वर्ष। 
सुंदर  हो यह साल और भी ,
लाए सुख औ हर्ष।। 

🌻🌻🙏🙏🌻🌻

-चारु शर्मा 
01 /01 / 2025 

Saturday, 28 September 2024

 नानी की कहानियाँ 











माँ, नानी की कहानियाँ  तो, हमें  पुरानी लगती हैं। 
तकनीकी, कंप्यूटर की ही बातें हम को जँचती हैं।।

हम हैं बच्चे नवीन युग के, फिर क्यों पीटें वही लकीर। 
सीख नित नए कौशल बदलें, अब हम दुनिया की तस्वीर।।

सच है बच्चो, कंप्यूटर, हम सब का ज्ञान बढ़ाता है। 
मानवता का पाठ लेकिन, मशीन को न आता है।।
 
नानी की बातें पुरानी , पाठ प्रेम का सिखलातीं।
नए जगत में जन-जन के, कल्याण का पथ दिखलातीं।।

कोमलता का स्पर्श इनमें ,भाव सदैव बड़ा सुंदर। 
प्रगति के पथ पर बढ़ना तुम, ले इसको मन के अंदर।।

-चारु शर्मा 
  

Friday, 5 July 2024

 गौरैया 





बरसों बाद दिखीं गौरैयाँ 
वे मेरे बचपन की चिड़ियाँ 

चहचहा रही थीं अनार पर 
फुदक-फुदक-फुर्र,डाल-डाल पर 

नयनों को विश्वास न आया 
पग, जाने को निकट, बढ़ाया 

देख उन्हें, ऐसे चहका मन 
मानो, मिल गए बिछुड़े प्रियजन 

मन ही मन पूछा यह उनसे 
क्या नाराज़ थीं तुम हमसे 

फिर हम सब को छोड़ न जाएँ 
आओ मिलकर इन्हें बचाएँ 

                     चारु शर्मा 
                      20/03/2024 


25 -30 वर्ष पूर्व हर घर के आँगन में फुदकने वाली गौरैया लोगों के लिए चिड़िया का पर्याय थी। अनेक लोग उसे चिड़िया कह कर ही सम्बोधित करते थे। आज यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। आइए, इनके संरक्षण में अपना योगदान दें। 🙏