कुछ विचारणीय प्रश्न
इस वर्ष भी एक सितंबर से पंद्रह सितंबर तक पूरे भारत में हिंदी पखवाड़ा मनाया गया। इस दौरान भाषा प्रेमियों एवं प्रवर्तकों के हृदयों ने कभी उल्लास, कभी गर्व तो कभी मायूसी का अनुभव किया । मेरा मन भी इन सब अनुभूतियों से अछूता न था। एक ओर हम हिंदी का उत्सव मना रहे थे और दूसरी ओर भारत के कुछ भागों से लोगों द्वारा हिंदी का विरोध किए जाने के समाचार मिल रहे थे। हिन्दीतर राज्यों में समय - समय पर हिंदी का विरोध कोई नई बात नहीं है। मेरे मन में अनेक प्रश्न उठे और अभी तक उठ रहे हैं इसलिए सोचा कि क्यों न उन्हें आप सब के समक्ष रखूँ।
हो सकता है कि इनमें से कुछ प्रश्न आप के मस्तिष्क में भी उठते हों और कुछ प्रश्न आप को बचकाने लगें किन्तु मेरा मत है कि भिन्न - भिन्न आयुवर्ग और सामाजिक एवं शैक्षिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों का हिंदी भाषा के प्रति दृष्टिकोण भी भिन्न होता है और ऐसी स्थिति में वरिष्ठ जन नयी पीढ़ी के दृष्टिकोण और दुविधा, दोनों को ध्यान में रखते हुए उसका मार्गदर्शन कर सकते हैं।
1. क्या केवल अहिंदी भाषी प्रांतों में हिंदी का बढ़ता विरोध हिंदी प्रेमियों को इस बात का एहसास कराता है कि हिंदी का तिरस्कार हो रहा है या हिंदी भाषियों का व्यवहार भी इस भावना को प्रबल कर रहा है?
2. क्या वर्तमान में हिंदी की उपयोगिता कम हो गई है और यह आज के तथाकथित आधुनिक युग की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ प्रतीत हो रही है या केवल कुछ लोगों द्वारा इसकी छवि खराब करके इसे आगे बढ़ने से रोका जा रहा है?
3. क्या वर्तमान स्थिति में भी हिंदी प्रेमियों का यह मानना है कि इंग्लिश का प्रयोग अधिक करने वाले गुलामी की मानसिकता से ग्रस्त हैं क्या और इसीलिए आज भी कविताओं और आलेखों में इस बात का उल्लेख किया जाता है ?
4. क्या हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि जब इतने भारतीय मल्टीनेशनल कंपनियों में कार्यरत हैं या विदेशियों के साथ व्यापार कर रहे हैं तो इंग्लिश में व्यवहार एक आवश्यकता है? यदि नहीं तो उसका क्या विकल्प है?
5. क्या इंग्लिश का वर्चस्व सचमुच इतना बढ़ गया है कि हिंदी में बोलने वाले व्यक्ति को अल्पज्ञ या अल्पशिक्षित मानकर हीन दृष्टि से देखा जाता है या यह बस कुछ लोगों का भ्रम है ?
6. क्या भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री सहित कुछ अन्य लोकप्रिय व्यक्तियों का हिंदी में वार्तालाप करना और भाषण देना हिंदी की सक्षमता और पहुंँच का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है और हिंदी भाषियों को गर्वित महसूस नहीं कराता?
क्या इन सभी विश्व प्रसिद्द व्यक्तित्वों के उदाहरण उन लोगों का भ्रम दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं जो इंग्लिश बोलने वालों को हिंदी भाषियों से श्रेष्ठ मानते हैं ?
7. क्या सचमुच हिंदी के विकास एवं विस्तार में बाधा का मुख्य कारण हिंदी विरोधियों की सक्रियता है अथवा हिंदी प्रेमियों एवं हिंदी भाषियों की उदासीनता और निष्क्रियता है ?
8. हिंदी का स्तर कौन गिरा रहा है? कौन इसका तिरस्कार कर रहा है?
क) कहीं स्वयं हिंदी भाषी शिक्षित वर्ग तो नहीं ?:
इंग्लिश का प्रयोग करते समय सदैव उसके व्याकरण और उच्चारण के प्रति सब सजग रहते हैं तो हिंदी के प्रयोग के समय क्यों नहीं? क्या इसलिए कि इंग्लिश मूलतः भारतीय भाषा नहीं है और भारत में सभी ने इसे स्कूली शिक्षा के माध्यम से ही सीखा है ; तो अच्छी इंग्लिश बोलना शिक्षित या उच्च शिक्षित होने का प्रमाण हो जाता है।
या यह उसी प्रकार है जैसे हम अपने उन परिचितों से, जो हमें किसी भी कारण से पसंद होते हैं या जिनसे हमें कुछ लाभ मिलने की अपेक्षा होती है, बहुत शिष्टता से पेश आते हैं किंतु अपने परिवार खासकर अपनी माँ के साथ एकदम अनौपचारिक रूप से बात करते हैं। बाहर वालों की भावनाओं का हमें सदैव ध्यान रहता है कि हम उन्हें किसी भी प्रकार से ठेस न पहुंँचाएँ या उन्हें नाराज़ न कर दें किंतु परिवार के सदस्यों की बात हो तो हमें यह सब ध्यान नहीं रहता? तो, कहीं जाने- अनजाने वे अपनी मातृभाषा का तिरस्कार कर , उसका स्तर तो नहीं गिरा रहे?
कहीं हिंदी भाषी स्वयं ही मानक हिंदी का प्रयोग करते समय उसकी शब्दावली, वर्तनी, व्याकरण एवं उच्चारण पर ध्यान न देकर उस की छवि एक अल्पशिक्षित वर्ग की भाषा की तो नहीं बना रहे ?
अहिंदी भाषी यदि हिंदी के प्रयोग में गलतियांँ करें तो समझ में आता है किंतु उनकी देखा-देखी जब हिंदी भाषी भी वैसी ही गलतियांँ करने लगें और जानबूझकर उनकी तरह अशुद्ध हिंदी बोलने और लिखने लगें तो यह बात क्या संदेश देती है?
ख) क्या फिल्में और धारावाहिक ?
एक समय था जब हिंदी सिनेमा, हिंदी गीतों और टेलीविज़न के धारावाहिकों ने हिंदी की लोकप्रियता बढ़ाकर उसके प्रचार-प्रसार में एक अहम भूमिका निभाई थी किंतु अब तो अधिकांश हिंदी फिल्मों और धारावाहिकों की कहानियों में वास्तविकता दर्शाने के नाम पर एक ओर तो सड़क छाप और अभद्र भाषा का प्रयोग बढ़ गया है और दूसरी ओर इंग्लिश के वाक्यों का प्रयोग भी बढ़ता जा रहा है।
क्या ऐसी फ़िल्में हिंदी की निम्न स्तरीय शब्दावली का अत्यधिक प्रयोग कर के उसको अल्प शिक्षित, ग्रामीण तथा आपराधिक मानसिकता से ग्रस्त व्यक्तियों की भाषा के रूप में प्रस्तुत कर उसकी छवि को धूमिल नहीं कर रही हैं? क्या यह हमें स्वीकार है?
ग) क्या समाचार पत्र?
इंग्लिश के समाचार पत्रों में इंग्लिश भाषा से संबंधित आलेख नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं। कभी उनमें शब्दों के उद्गम, उनके अर्थ, विभिन्न संदर्भों में उनका प्रयोग, वर्तनी एवं अन्य व्याकरण संबंधी विषयों पर जानकारी दी जाती है, कभी किसी खेल या एक्टिविटी के माध्यम से पाठकों को अपनी इंग्लिश शब्दावली विस्तृत करने के लिए प्रेरित किया जाता है किंतु हिंदी के समाचार पत्रों में ऐसा यदा- कदा ही देखने को मिलता है।
- पिछले कुछ दशकों तक हिंदी समाचार पत्रों ने हिंदी के प्रचार- प्रसार में बहुत अहम भूमिका निभाई है किंतु अब उनमें भाषा संबंधी कोई समर्पित कॉलम क्यों नहीं आता?
-बीते दशक में हिंदी के शब्दों की वर्तनी में कई बदलाव किये गए हैं।संयुक्त अक्षरों की बनावट में परिवर्तन किया गया है। मुद्रण की समस्या के कारण समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कुछ अशुद्धियाँ अक्सर देखने को मिलती हैं। क्यों नहीं वे अपने पाठकों को नियमित तौर पर इनके बारे में अवगत करा कर जागरूक रखते ?
क्या वे लोगों के भाषा ज्ञान को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि उन्हें इसकी आवश्यकता महसूस नहीं होती अथवा कोई और कारण है ?
घ) क्या विद्यालय?
बहुत से विद्यालयों में हिंदी का एक भी विस्तृत शब्दकोश नहीं मिलता और न कभी हिंदी अध्यापक उसकी मांँग करते हैं। जहाँ एक ओर इंग्लिश के अध्यापक-अध्यापिका भाषा के प्रति इतने सजग और मेहनत करते दिखाई देते हैं वहीं हिंदी शिक्षकों में इतनी उदासीनता क्यों ?
इंग्लिश के अधिकांश अध्यापक विद्यालय में सामान्य अथवा अनौपचारिक वार्तालाप में भी व्याकरण एवं अपने उच्चारण के प्रति सजग रहते हैं किंतु हिंदी के अध्यापक नहीं। हिंदी के बहुत से अध्यापक एवं अध्यापिकाएंँ अ, श,क्ष,ए की मात्रा एवं औ की मात्रा का सही उच्चारण नहीं करते। वे अ को ऐ, श को स, क्ष को च्छ, ए और औ की मात्रा को क्रमशः ऐ की मात्रा और ओ की मात्रा की भाँति उच्चरित करते हैं। विद्यार्थियों को यह अत्यंत हास्यास्पद लगता है और इससे हिंदी भाषियों की छवि भी खराब होती है।
जब इंग्लिश के शिक्षक एवं शिक्षिकाएँ निरंतर अभ्यास से व्याकरण तथा उच्चारण पर अपनी पकड़ बढ़ा रहे हैं तो हिंदी के शिक्षक-शिक्षिकाएँ क्यों नहीं?
च) क्या शब्दकोश का नगण्य उपयोग ?
इंग्लिश शब्दकोश की तुलना में हिंदी शब्दकोश का प्रयोग बहुत कम लोग करते हैं। स्थिति यह है कि बहुत से हिंदी शिक्षकों तक के घर में हिंदी का एक भी शब्दकोश दिखाई नहीं देता जबकि इंग्लिश का छोटा-मोटा शब्दकोश अवश्य होता है। किसी संशय की स्थिति में वे इंटरनेट पर , जो कि अभी उतना परिपक्व और भरोसेमंद नहीं है, देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं अथवा अपने विद्यालय के शब्दकोश पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में जनसाधारण से तो क्या ही अपेक्षा की जाए ?क्या अच्छे शब्दकोशों के प्रयोग पर बल नहीं दिया जाना चाहिए ?
9. क्या वर्तमान में हिंदी शब्द क्लिष्ट अथवा नाटकीय एवं हास्यास्पद लगते हैं जिस कारण से लोग रोज़मर्रा के वार्तालाप में उनके स्थान पर उर्दू-फा़रसी या इंग्लिश के शब्दों का प्रयोग करने लगे हैं? उदाहरण :
चिह्न - sign
कक्षा - क्लास class
विद्यालय- स्कूल school
शिक्षक / अध्यापक- टीचर teacher
सहस्र - हजा़र
स्पर्धा - कॉम्पीटीशन competition
समय- टाइम time
प्रभावशाली- इंप्रेसिव impressive
प्रभावित- इंप्रेस्ड impressed
अद्भुत - अमेजिंग amazing
कठिनाई -प्रॉब्लम problem
संशय- डाउट doubt
निधन- डैथ death
मांँ - मदर mother/ मम्मी mummy
पिता- फा़दर father /पापा papa
इत्यादि
10. क्या अब, पुनः हिंदी वाक्यों में इन शब्दों का प्रयोग करना हास्यास्पद प्रतीत होगा या हमें धीरे-धीरे एक-एक, दो-दो शब्द करके हमें इनका प्रयोग बढ़ाना चाहिए?
11. जो लोग अभी तक रोज़मर्रा की बोलचाल में अच्छी हिंदी बोल रहे हैं, क्या हमें उन सब का आह्वान नहीं करना चाहिए कि वे अपने बच्चों और उनके बच्चों को भी अच्छी हिंदी सिखाएंँ एवं बोलने के लिए प्रेरित करें?
12 . क्या हमें पूरे भारत में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने की चिंता छोड़,पहले मूल रूप से हिंदी भाषी लोगों को बेहतर हिंदी बोलने और लिखने के लिए प्रेरित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि पहले हम सभी हिंदी भाषी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदी की जड़ें मजबूत करें और फिर अन्य राज्यों में उसके प्रचार के बारे में सोचें।
इन सभी की सम्मिलित जनसंख्या लगभग 65 करोड़ है। क्या यह छोटी बात है ?
13. आज तथाकथित हिंदी बेल्ट में यह स्थिति आ गई है कि सभी फ़ार्मेसी की दुकानों पर ' दवाइयाँ ' की जगह ' दवाईयाँ ' लिखा दिखता है। क्या सभी हिंदी प्रेमियों को इस बात का संज्ञान लेकर , बाज़ारों या किसी भी सार्वजानिक स्थान पर हिंदी शब्दों की वर्तनी में किसी भी प्रकार की अशुद्धि को इंगित कर उसे दूर करवाने के लिए प्रयासरत नहीं होना चाहिए?
क्या हम हिंदी भाषी इस बात के लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं कि अपनी हिंदी सुधारने का हर दिन प्रयास करेंगे? उसकी विभिन्न बोलियों के प्रयोग के साथ-साथ मानक हिंदी का भी सतत प्रयोग करेंगे;मौखिक एवं लिखित , दोनों रूपों में?
14. क्या हिंदी प्रेमी इंग्लिश के प्रति वही भाव रखते हैं जो अहिंदी भाषी हिंदी के प्रति? या इनमें कुछ अंतर है?
15. आज की युवा पीढ़ी के लिए अच्छी, शुद्ध हिंदी में बोलना कठिन ही नहीं बल्कि बड़ी उम्र, पुराने ज़माने और आदर्शवादी या रूढ़िवादी मानसिकता का द्योतक है।
इसकी विपरीत, भले ही इंग्लिश में बोलना उनके लिए कठिन हो, वे प्रयास करते हैं क्योंकि वे उसे आधुनिकता एवं समसामयिकता के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
हिंदी की इस छवि को हम कैसे बदल सकते हैं? हम निजी स्तर पर हिंदी भाषा के प्रयोग में शुद्धता लाने के लिए कुछ प्रयास कर सकते हैं ?
सभी विद्वज्जनों एवं हिंदी प्रेमियों के लिए ये विचारणीय प्रश्न हैं।
- चारु शर्मा
24 /09/25