छंदोबद्ध रचनाएंँ
कुंडलिया छंद
चाहें उन्नत हों सभी, पर उर दुविधा मीत।
पुकारता वैश्वीकरण, संस्कृति से भी प्रीत।।
संस्कृति से भी प्रीत, सुहाती परंपराएँ।
कैसे जग की रीत, कहो इन संग निभाएंँ।।
विषय लगे गंभीर, हृदय भरता है आहें।
हल ढूंँढ़ें, रख धीर, सभी अब दोनों चाहें।।
-चारु शर्मा
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