जय हो गणपति बाप्पा की !🌺🌺🌼🌼🌺🌺
रुचि दो-तीन वर्षों से प्रयास कर रही थी कि उसकी अपार्टमेंट सोसाइटी में जब भी कोई उत्सव मनाया जाए तो उसके आयोजन में डिस्पोज़ेबल प्लेट, कटोरी,आदि का उपयोग न हो। कारण अनेक थे और सबसे बड़ा कारण था कचरा।
जब भी कोई कार्यक्रम होता तो इतनी डिस्पोज़ेबल प्लेटें और कटोरियाँ फिकतीं कि कूड़ेदान भी स्वयं को असमर्थ पाते। हल्के होने के कारण कुछ गिलास, कटोरियाँ सूखे पत्तों की भाँति जहाँ-तहाँ उड़ते फिरते और साथ ही उनमें चिपकी खाद्य सामग्री भी।
कार्यक्रम के बाद का दृश्य ऐसा प्रतीत होता था मानो नितांत असभ्य जन वहाँ हुड़दंग मचा कर गए हों। इस स्थिति को सुधारने के लिए रुचि और उसकी सोसाइटी के कुछ अन्य लोग बहुत समय से प्रयासरत थे किन्तु सफलता नहीं मिल रही थी।
फिर कुछ ऐसा हुआ कि उसकी सोसाइटी में गणेश उत्सव का आयोजन हुआ। यह पहली बार थी जब उनके यहाँ इस उत्सव का आयोजन किया जा रहा था। सब लोग उत्साहित थे और इसे भव्य रूप देने में जुटे हुए थे। रुचि के मन में आशा की किरण जगी और पुनः उसने अपनी सोसाइटी के निवासियों से आग्रह किया कि वे इस उत्सव में डिस्पोज़ेबल पात्रों का उपयोग न करें। उसने कहा,"ऐसा करने से न केवल हमारे सफाई कर्मचारी एवं धरती माँ अनावश्यक कचरे के बोझ से जूझने से बचेंगे, बल्कि उत्सव की शोभा भी बढ़ेगी।"
सफलता अभी दूर थी किन्तु उसे अपनी ओर पग बढ़ाती दिखी। अधिकांश लोगों ने तथाकथित ' इकोफ्रैंडली' डिस्पोज़ेबल प्लेटों और कटोरियों में खाया किन्तु रुचि की मित्र मंडली और कुछ अन्य लोग प्रसाद एवं भोज के लिए अपने पात्र लेकर आये।
गणपति की स्थापना के अगले दिन सुबह रुचि उनके दर्शन करके हाथ जोड़े खड़ी थी तभी पीछे से उसकी दोस्त पूनम की खिलखिलाती हुई आवाज़ आई, "गणपति से डिस्पोज़ेबल का यूज़ बंद करवाने को कह रही है?" रुचि को भी हँसी आ गयी और जवाब में बोली,"ट्राय करने में क्या जाता है?" और सचमुच.. !
कुछ महीनों बाद उनकी सोसाइटी में कुछ नए लोगों ने घर खरीदे। उन परिवारों की महिलाओं की पूनम और रुचि से मित्रता हो गयी। अब इसे गणपति बप्पा की कृपा ही कहा जाएगा कि वे महिलाएँ व्यवहार कुशल होने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति सजग भी थीं। जब नयी प्रबंधन कमिटी बनी तो वे उसकी सदस्य बनीं। बस, फिर क्या था; जब अगले बरस गणेश उत्सव की तैयारी आरम्भ हुई तो प्रबंधन कमिटी ने स्पष्ट शब्दों में सबसे प्रसाद एवं भोज के लिए अपने पात्र लाने का आग्रह किया। हालाँकि, सुविधा के लिए कुछ डिस्पोज़ेबल प्लेटें तब भी रखी गयी थीं। इस बार अधिकांश लोग अपने पात्र साथ में लाये।
डिस्पोज़ेबल पात्रों का उपयोग घटते ही पंडाल की स्वच्छता तथा आयोजन की शोभा में हुई बढ़ोतरी सब को दिख रही थी। सफ़ाई कर्मचारी भी प्रसन्न थे क्योंकि उन्हें अनावश्यक कचरा नहीं उठाना पड़ा और पिछली बार की अपेक्षा इस बार आयोजन स्थल की सफ़ाई जल्दी हो गई। सफलता अब निकट आ रही थी।
अगले वर्ष गणेश उत्सव पर फिर से कमिटी द्वारा लोगों से अपने पात्र साथ में लाने का आग्रह किया गया और इस बार सभी लोग अपने पात्र लेकर आये। अब रुचि का मन संतुष्ट और प्रसन्न था। उसके और उसके साथियों के प्रयासों को अंततः सफलता मिल गई थी। सब मिलकर बोले,"जय हो गणपति बप्पा की!"🙏😊
गणपति आए, सद्बुद्धि लाए।
हमने सिंगल यूज़ प्लास्टिक बिसराए।।
जय देव! जय देव!
डिस्पोजे़बल का किया सफ़ाया।
प्रसाद अपने पात्रों में खाया।।
कचरे के न कहीं ढेर लगाए।
भूमि,पवन,जल सभी मुस्कुराए।।
जय देव! जय देव!
शुद्ध मिट्टी की मूरत बिठाई।
पत्रों,पुष्पों से सज्जा बढ़ाई।।
कोई कृत्रिम न किया अलंकरण।
हम संग हर्षाया पर्यावरण।।
जय देव! जय देव!🙏🌼🌸🌼🌸
- चारु शर्मा
27 /08 /2025
This story is based on my own experience and dedicated to all who made it possible. गणपति बप्पा सब पर कृपा करें 🙏
ReplyDeleteसीख लेने योग्य कहानी। अति सुन्दर।
ReplyDelete🙏😊
DeleteWell written
ReplyDelete🙏😊
Deleteअति सुंदर कहानी ।आज की सोसायटी समस्या को मुखर करती हुई कहानी
ReplyDelete🙏😊
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