सरला समझ गई
आज तो सरला ने तय कर ही लिया कि श्रीमती माथुर के यहाँ काम
नहीं करेगी।"फालतू समझ रक्खा। औरों के य्हाँ भी जाऊँ कि इन्हीं
के घर बैट्ठी रऊँ?"गुस्से में बड़बड़ाती हुई घर में घुसी तो बेटी,गौरी
ने पूछा,"क्या हुआ अम्मा? किसी से झगड़ा करके आई हो क्या?"
तपाक से बोली,"अरे अस्सी नंबर वालियों ने दुखी कर रक्खा। पूरे
टेम कचरा इ छँटवाती रैवें। सब्जी के छिलके य्हाँ डालो, कागज-
प्लास्टिक व्हांँ डालो, झाड़ू का कचरा अलग डालो। कूड़ेदानों की
लैन लगा रक्खी। दिमाग का दही कर रक्खा। मैं ना करनेगी उनके
य्हाँ काम अब।"
गौरी बोली,"ओ.. कचरा पृथक्करण की बात कर रही हो। पिछले
महीने हमारे विद्यालय में कुछ लोग आए थे और उन्होंने इसके
बारे में सब बच्चों को समझाया था। उन्होंने हमें बताया कि कचरा
कई प्रकार का होता है और हम इसे अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित
करके इससे उत्तम गुणवत्ता की खाद तथा अन्य बहुत सी उपयोगी
वस्तुएंँ बना सकते हैं और साथ ही पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण को भी
कम कर सकते हैं।"
सरला को बेटी की बात किसी घिसे-पिटे भाषण जैसी सुनाई दे रही थी,
सो बीच में ही काटते हुए बोली," अब पर्यावरण देक्खूँ कि रोजी-रोटी?
तू जाके अपना काम कर; मुझे मुनिया को चारा डालने जाना है।"
इतना कहकर सरला अपनी गाय मुनिया को देखने चली गई।
पड़ोस के दो बच्चे,किशन और कुसुम मुनिया को खिलाने के लिए
मटर के छिलके लाए थे। सरला ने वे छिलके भी मुनिया को खिला दिए।
वे दोनों रोज़ सब्जी के छिलके लाते थे और सरला उन्हें मुनिया को
खिला देती थी। बच्चों को मुनिया से बहुत लगाव था।वे प्यार से उसके
ऊपर अपना हाथ फेरते और वह भी धीरे से अपनी गरदन हिलाकर
उन्हें ऐसा करने की सहज स्वीकृति दे देती।
बच्चों का सब्जी के छिलके लाने का सिलसिला यकायक एक दिन
रुक गया। कुछ दिन तो सरला ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया किंतु
जब बहुत दिन हो गए तब एक दिन जैसे ही वे दोनों उसे मिले फ़ौरन
उनसे पूछ बैठी,"अरे तुम लोग इतने दिनों से आ क्यों नी रे? मुनिया
की याद नी आती क्या?"
किशन बोला,"मौसी मम्मी ने ब्यूटी पार्लर का काम शुरू किया है तो
मदद के लिए एक काम वाली रख ली है।वह सफाई करके सारा
कचरा एक थैले में भर देती है। सब्जी के छिलके भी उसी कचरे के
साथ फिंक जाते हैं।
सरला ने हैरानी भरी नज़रों से उन बच्चों को देखा और झट से बोली,
"अरे ऐसा क्यों करे हो? सब्जी के छिलके अलग रखने में कितनी देर लगेै?
एक डिब्बा अलग बना लो। उसमें सब्जी के छिलके डाल दिया करो और
दूसरे डिब्बे में बाकी का कचरा। तुम अपनी कामवाली को समझा देना।
दो-तीन दिन में वो भी सीख जावेगी और छिलके अलग डालने लग जावेगी।
तुम्हारे छिलके भी कचरे में बेकार नी जावेंगे और हमारी मुनिया भी
खुश रैवेगी।"
सरला की बात सुनकर उसके साथ खड़ी गौरी मन ही मन मुस्काई और
बोली,"पर अम्मा तुमको तो यह सब झंझट लगता था। इसीलिए तुमने
माथुर आंटी का काम छोड़ा था।"
सरला को तुरंत अपनी कही बात समझ में आ गई और बोली,"मैंने
अपनी गलती मान ली। अब से मैं खुद भी कचरा अलग-अलग करूँगी।
उसे क्या कैवें, कचरा पृथक्करण करूँगी और आसपास के सभी लोगों
को इसके बारे में समझाऊंँगी। यह कहते हुए सरला ने प्यार से गौरी को
गले लगा लिया।
चारु शर्मा
१४/० १/२२
मुहावरा (idiom)
दिमाग का दही कर देना - किसी विषय पर अत्यधिक सोच विचार करने
के लिए विवश करके परेशान कर देना /
असमंजस की स्थिति में डाल देना (To
confuse someone)
A topic to be discussed must.
ReplyDeleteGood effort keep it �� up beta
ReplyDeleteBeautiful poem n briefly explains the green environmen.
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास आपको बहुत-बहुत बधाई आने वाला प्रत्येक नया जीवन में अनेक सफलताएँ एवं अपार खुशियाँ लेकर आये।
ReplyDelete💐
Beautiful poem. It was very nice to read.
ReplyDeleteआपकी लिखी कहानी बहुत अच्छी है।आपका प्रयास बहुत सराहनीय है आप को इस कार्य के लिए बधाई।👏👏🙏😊
ReplyDeleteSo nicely written. 👏👏
ReplyDeletePlease keep on writing stories and poems for kids. Will make my kid's to read them.
ReplyDeleteSure,thanks Sonal :)
Deleteअरे वाह बहुत सुंदर लिखा प्रेरणादायक कहानी है बहुत बहुत बधाई शुभकामनाऐ
ReplyDeleteBeautifully written.
ReplyDeleteUnique story with a unique moral��
ReplyDeleteआप सभी का कहानी की सराहना करने एवं मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :)
ReplyDeletebahut badhiyaan....beautiful message passed in a simple effective way.
ReplyDeleteThankyou Shweta :)
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