मैं हिन्दी
भारत के प्रत्येक भाग में
मैं सब को मिल जाती हूँ
कहीं पे ज़्यादा तो कहीं कम ,
बोली , समझी जाती हूँ
जन-जन की भाषा ,मैं हिन्दी
अवधी ,छत्तीसगढ़ी,बघेली
ब्रज, कन्नौजी ,खड़ी ,बुंदेली
धरा के जैसी ,ढली हुई हूँ
उसी के रंग में ,रँगी हुई हूँ
कई रूप हैं मेरे , मैं हिन्दी
संस्कृत से जन्मी हूँ, किन्तु
सबको लेकर,चली हूँ साथ
अरबी, फ़ारसी, तुर्की, उर्दू,
अंग्रेज़ी संग मिलाये हाथ
गले सब को लगाती,मैं हिन्दी
किसी की हूँ मैं मातृभाषा
कोई सुनकर,पढ़कर सीखा
बड़े धैर्य से , धीरे -धीरे
है मैंने हृदयों को जीता
हूँ सब को सुहाई, मैं हिन्दी
भारत का गौरव हूँ मैं
अखंड भारत की पहचान
विदेशियों को भी लुभा रही
मैं हूँ हिन्दुस्तान की शान
हूँ हिन्द की आत्मा,मैं हिन्दी
-चारु शर्मा
६/९/१७
Wah Charu!! Bahut khoob.
ReplyDeleteStraight from a Hindi bhashi's heart... सुंदर रचना चारु!
ReplyDeleteThank you Purnima
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